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________________ ३७२ आदर्श जीवन । यात्राके साथ आपके दर्शन और आपको प्रतापगढ पधारनेकी विनती करने आये थे । आसपुरके श्रावक भी इस समय तीर्थयात्राके उपरांत आपके दर्शनका लाभ लेने वहाँ आ पहुंचे थे वे भी अपने यहाँ पधारनेकी विनती करते रहे। कई रोज संघ श्रीकेसरियानाथजी ठहरा । खूब आनंदसे यात्रा पूजा प्रभावना साधर्मिवात्सल्यादि धर्मकार्य होते रहे । आखरी दिन चलते हुए दादा केसरियानाथजीकी यात्रा कर संघ सहित आप वहाँसे विदा हुए और उसी क्रमसे उदयपुर पधारे। ... .. ___ इस वक्त आप श्रीसंघ उदयपुरके आग्रहसे शहरके उसी चाहबाईके उपाश्रयमें-जहाँ श्रीविजयनेमिसरिजी पहले ठहरे हुए थे-आ ठहरे । क्योंकि श्रीविजयनेमि मूरिजी कुछ शरीर नरम हो जानेसे बाहर धर्मशालामें सपरिवार जा ठहरे थे इस लिये उपाश्रय खाली था। चार दिन आप वहाँ ठहरे । संघके आग्रहसे दो रोज आपने और एक रोज आपके सुशिष्य पं० ललितविजयजीने श्रीसंघ उदयपुरको उपदेशामृत पिलाया। दो साधर्मिवात्सल्य-एक संघपतिकी तरफसे और एक श्रीसंघ उदयपुरकी तरफसे-हुए थे। .. आजकल कहा जाता है कि यतियोंका बहुत पतन हो गया है। श्रावक प्रायः यतियोंको अपने घरोंमें गोचरी लेने नहीं आने देते। और तो और अपने खास शहरमें भी यतियोंकी मान मर्यादा बहुत कम हो गई है । आजकल यतियोंका नि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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