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________________ आदर्श-जीवन । AARAAAAAAAAAAAAAAAAA. वीरविजयजी महाराजने यह बात चाहे किसी भी विचारसे कही हो, मगर उसका असर आपके दिल पर हताश करनेवाला और खीमचंदभाईके दिल पर उत्साह बढ़ानेवाला हुआ । शामको अहमदाबाद पहुंचे और मुनीमके सालेके मकान पर रहे । यहाँसे आपने भाग जानेका प्रयत्न किया; मगर नाकामयाब हुए। बड़ोदे पहुँचे । यहाँ, कहीं भाग न जाय इस खयालसे, आपकी कैदीकी तरह रक्षा होने लगी । आपने भी - 'मौनं सर्वार्थ साधक' का पाठ पढ़ा । न किसीसे विशेष बातचीत न किसीके साथ ऊठ बैठ । चुपचाप अपने धर्म ध्यान में लगे रहते । नित्य प्रासुक जल पीते; एकासना, बीआसना, उपवास इच्छानुसार करते; कंबल पर सोते सुबेशाम प्रतिक्रमण करते और साधुकी तरह अपना जीवन बिताते । __आपको यह मालूम था कि, आत्मारामजी महाराज खीमचंदभाईकी आज्ञाके बिना कभी दीक्षा न देंगे इसलिए आपने सोचा कि, ऐसा काम करना चाहिए जिससे तंग आकर खीमचंद भाई आप ही छुट्टी दे दें । आपने, अपने पासकी चीजें याचकोंको देनी शुरू की । जब वे पूरी हो गई तब घरकी चीजोंमेंसे जो चीज समय पर आपके हाथ आ जाती वही याचकको For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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