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________________ आदर्श-जीवन । २३ नीचे ले गये । साधु चुपचाप देखते रहे; फकत इतना कहाः“खीमचंदभाई बातोंहीसे काम चल सकता है। ऐसी खींचतान क्यों करते हो ?" मगर उनकी बात पर किप्तीने ध्यान नहीं दिया। क्षमा प्रधान धर्मके साधु पंच महाव्रत पालनेगले शान्तिके साथ देखते रहने और कर्मकी विचित्र गतिका विचार करनेके सिवा और करते ही क्या ? कुछ श्रावक भी वहाँ जमा हो गये थे। उन्होंने भी आपको धमकाया और खीमचंदभाईके साथ जानेका उपदेश किया । कारण यह था कि गाँवका पटेल मुनीम भगवानदासके सालेका सुसरा था । गाँवोंमें तो, इस बातको सभी जानते हैं कि, निधर पटेल पटवारी होते हैं उधर ही सभी होते हैं। उस दिन अपने पकड़नेवालोंके साथ आप बावलेहीमें पटेलके घर रहे । दूसरे दिन अहमदाबादकी तरफ रवाना हुए। दुपहरमें एक वृक्षके नीचे गाड़ियाँ खोलकर सभी कुछ विश्राम कर खा पी चलनेकी तैयारी कर रहे थे उसी समय वीरविनयनी महाराज आदि कुछ साधु, अहमदाबादसे पालीतानेकी तरफ जाते यहाँ आ मिले । आप उनके चरणोंमें गिर गये और गिडगिड़ाकर बोले:-" महाराज ! रक्षा कीजिए।" __ वीरविजयजी महाराजने कहाः-" इतना उदास क्यों होता है ? अपने भाईको प्रसन्न करके, उनसे इजाजत लेके, आना। हमने भी तो बड़ी उम्रहीमें दीक्षा ली है।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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