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________________ आदर्श - जीवन | तो उधर विहार किया ही नहीं है । शायद इरादा कम होगा । " महाराज साहबने ही, प्रेमाभाईकी सलाह मानकर, पहले विहार किया । आप साबरमतीके पास सरखेज गाँवमें जाकर ठहरे।. विहार के समाचार सुनकर मुनीमका साला आया और उसने आपसे पूछा:-" क्या तुम भी आज ही जाओगे ! " २२ आपने उत्तर दिया :- " आज नहीं एक दो दिन के बाद ।" वह चला गया और उसने बड़ोदे सूचना भेज दी कि, - " मैं ये लोग जब रवाना होंगे तब तार द्वारा खबर दूँगा । "" महाराज श्रीहर्षविजयजीका भी अहमदाबादसे विहार हुआ। पहला मुकाम सरखेज, दूसरा मोरैया और तीसरा बावला गाँवमें हुआ । यहाँ पर दुपहर में जब साधु धर्मशाला में विश्राम ले रहे थे तब एक बैलगाड़ी घर घर करती हुई आकर वहाँ थम गई । गाड़ी के थमते ही एक आवाज आई । परिचित मगर क्रोधपूर्ण । आवाज सुनकर आपके हृदयमें एक भय पैदा हुआ । आपने उठकर नीचे की तरफ़ देखा । इतनेहीमें धड़ 'वड़ करते तीन आदमी ऊपर चढ़ आये । उनमें से एक आपके भाई खीमचंद थे; दूसरा मुनीम भगवानदास: था और तीसरा आदमी था आपके बहनोई नानाभाई | उन्होंने आते ही आपका हाथ पकड़ा और घसीटकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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