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________________ आदर्श जीवन | बहाने बनायेंगे; एक भी न आयगा । इसलिए अपने ही भरोसे 19 पर उधर जानेका विचार करना चाहिए । सब साधुओंने एक स्वर से कहा:- " हमें कष्टों की कोई परवाह नहीं है । हम पंजाबसे यहाँ तक आये हैं। रास्ते में कहाँ सब जगह श्रावकों के घर थे। कहीं जाट जमींदारोंके घरोंसे आहारपानी ले आये थे और कहीं निराहार ही, दोष रहित आहार न मिलनेसे रहना पड़ा था । वहाँ तो पाँच सौ श्रावकोंके घर हैं; और अगर बीच बीचमें आहारपानी नहीं मिलेगा तो भी कोई चिन्ता नहीं है । आप तो केवल वहाँ चौमासा करनेकी आज्ञा भर दे दीजिए । " > महाराजने जब साधुओंका इस तरह उत्साह देखा तब कहाः " अच्छी बात है । उधर ही विहार करेंगे । एक बार दादा की यात्रा करले, फिर जैसी स्पर्शना होगी होगा । Jain Education International २१ 11 पालीतानेकी तरफ विहार करनेका विचार स्थिर होगया । महाराजका इरादा था कि, पहले थोड़े थोड़े साधु उस तरफ़ जायँ फिर मैं यहाँ से विहार करूँगा । मगर सेठ प्रेमाभाईने विनती की कि, " पहले आपका ही यहाँ से विहार करना उचित होगा; क्योंकि लोगोंको इस समाचारसे उत्साह मिळेगा और जो भाग्यवान वहाँ जानेका इरादा रखते होंगे वे अपनी तैयारीयाँ करने लग जायेंगे । अन्यथा सभी सोचेंगे कि, महाराज साहबने For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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