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________________ २० आदर्श जीवन । - बाहर से आये हुए श्रावकलोग महाराजसे बार बार विनती करके अपने अपने घर चले गये । आत्मारामजी महाराजने अपने साधुओंकी सलाह माँगी । सबने प्रसन्नतापूर्वक पालीतानेमें चौमासा करनेकी सम्मति दी । Jain Education International I महाराजने फर्मायाः " इरादा बहुत अच्छा है । वहाँ जानेसे तीर्थसेवा, शासनसेवा, आत्मसाधन सभी कार्य सरलता से हो सकेंगे । पवित्र वातावरण में, प्रतिक्षण, अनायास ही, पवित्र और आत्मजागृतिकी भावनाएँ आती रहेंगी । जो श्रावक विनती कर गये हैं वे भी वहाँ अवेंगे और रहेंगे; उनके वहाँ रहने से वे आरंभ समारंभसे, छलकपटसे और व्यापार रोजगारसे होनेवाले पापात्रवसे मुक्त होंगे और ब्रह्मचर्यव्रतसे रहकर धर्मध्यानमें विशेषरूपसे अपने मनको लगासकेंगे। उन्हें भी लाभ है और हमें भी । उनके कारण हमें कठिनता कम पड़ेगी । तो भी मैं उनके ही भरोसे पालीताने में जाकर चौमासा करना नहीं चाहता । यदि आप लोगों में आत्मबल विकसित करनेके भाव हों ? धैर्यके साथ परिसह सहने की शक्ति हो और सभी तरहके उपद्रव, यदि हों, शान्ति के साथ सहनेका सामर्थ्य हो तो चलिए; हम लोग पालीतानेही में चौमासा करेंगे । इतना मुझे विश्वास है कि, थोड़े दिन के बाद शासनदेव हमारे लिए सब तरहके सुभीते कर देंगे । श्रावकोंमें से यदि एक भी किसी कारणसे पीछा हटा तो फिर सभी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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