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आदर्श-जीवन |
दे देते । दुकान पर भी इसी तरह करते । माँगने आए हुए याचकको कभी यथासाध्य, वापिस न जाने देते ।
हीराचंद ईश्वरदास जौहरी के यहाँ, खीमचंदभाईकी ज्यादा बैठक थी। दोनों सगे मासीके लड़के भाई; हीराचंदभाईके कारण ही खीमचंदभाई भी कुछ गिन्ती में आये थे इसलिए ये उनका उपकार भी मानते थे; इन पर उनका प्रभाव भी था; साथ ही वे धर्मात्मा और नेक सलाहकार भी थे । वे हमेशा यथासाध्य, दो, तीन, चार - जितनी हो सकती थीं उतनी - सामायिक किया करते थे । यदि कभी ज्यादा नहीं होती थीं तो एक तो नित्य करते ही थे । सामायिक में वे अध्ययनके सिवा कभी दूसरी बातें न करते थे; इसलिए उन्हें तत्त्वोंका बोध भी अच्छा था । बड़ोदेमें आत्मारामजी महाराजके व्याख्यानोंको भही प्रकार समझने और - उनपर मनन करनेवाले हीराभाई ही थे । आत्मारामजी महाराजपर उनकी असाधारण भक्ति हो गई थी ।
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एक दिन खीम चंदभाईने जाकर हीराचंदभाईसे कहा कि, “छगन मुझे तंग कर रहा है और घरकी चीजें लुटा रहा है । " उन्होंने कहा, " खीमचंद ! तुम उसे व्यर्थ ही बाँध कर रखनेका प्रयत्न करते हो। मैं तो बराबर देख रहा हूँ कि, बचपनही से वह उदासीन है; वैरागी है। मैंने उसको सांसारिक कामों में कभी उत्साहसे भाग लेते नहीं देखा । महाराज आत्मारामजी जब
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