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________________ आदर्श जीवन । अस्तु मजबूर कोर्टकी आज्ञाको मान देना ही पड़ा, ताहम भी झघड़ा — कुसंप— कायमका कायम ही रहा इस लिए मद्देनजर कुसंपको काटनेके लिए यही रास्ता दुरुस्त है कि ( १ ) मंदिरजीकी आमदनीकी खातर मंदिरजीको मान देकर चौवटियेका साथिया बोलीवालेके साथियके बाद कायम किया जाता है; बशरते कि पाँच रुपैयेसे कमकी बोली न होनी चाहिये । अगर पाँचसे कमकी बोली होगी या किसीकी बोली न होगी तो उस वक्त चौवटिया ही पहला साथिया करेगा। इस हालतमें मंदिरजीकी आमदनीकी हानिकी शिकायत भी न रहेगी और कोटकी आज्ञाका अपमान भी न होगा और श्रीसंघमें हमेशहके लिए शांति बनी रहेगी । ३४६ ( २ ) जब कभी गामसाई काम होवे तब चौवटियेका ही सांबेला होवे, परंतु जब कभी एक कोई आदमी अपने घरका उत्सवादि करे, ऐसे मौकेपर घरधनीका ही सांबेला होना मुनासिब है । हाँ अगर अपनी खुशीसे चौबटिया साथमें दूसरा सांबेला करना चाहे तो कोई हरजकी बात नहीं, मगर मुख्यता घरधनी के सांबेलेकी ही होगी। T (३) कुडालका लड्डु - लाण आदिकी कार्रवाई किसीके स्थानपर करनेके बदले आयंदाको धर्मशाला आदि पंचायती मकान में बदस्तूर की जावे । ( ४ ) भाँगकी रसम धर्मसे और इन्सानियतसे खिलाफ होनेसे बिलकुल उड़ा दी जाती है। बुरी रसमकी जड़को काट देना ही मुनासिब है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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