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आदर्श जीवन ।
- आपके साथमें जो सिपाही था उसकी बीजापुरके श्रीसंघने अच्छी तरहसे चिकित्सा करवाई थी । पन्द्रह दिनके बाद वह भी राजी हो कर बीजापुरके संघका उपकार मानता हुआ अपने घर चला गया ।
बीजापुरसे विहार कर आप सेवाड़ी पधारे । वहाँ पाँच दिनतक ठहरे। लोगोंको धर्मामृत पिला कृतकृत्य किया। करीबश्सोलह बरसोंसे वहाँ धड़े बंदी हो रही थी। आपने लोगोंकों समझा कर उस धड़े बदाका तोड़ा। ' सेवाड़ी और लुणावेके बीच में एक रमगर नामका गाँव है। उसके जागीरदारने आपकी प्रशंसा सुनी थी। उनके दिलमें भी आपके वचनामृतपानकी इच्छा उत्पन्न हुई। उन्होंने सवाड़ीआकर आग्रह पूर्वक अपने गाँवमें आनेकी आपसे विनती की। आप वहाँ पधारे । सेवाड़ीसे बहुतसे आदमी आपके साथ गये थे
और लुणावेसे बहुतसे आदमी आपके सामने आये थे। 'जागीरदारके यहाँ इतनी जगह न थी कि वे उन सबको बिठा सकते इस लिए उन्होंने नदीके किनारे वट वृक्षके नीचे एक पाट बिछवा दिया । हमारे चरित्रनायक उस पर बिराजे और जागीरदार एवं सभी श्रावक नदीकी रेतीमें बैठ गये। उस समय ऐसा मालूम होता था मानों जंगलमें समव सरणकी रचना हुई है । जंगल में मंगल पुण्यवानोंके पदार्पणसे ही होता है। आपके श्रीमुखसे व्याख्यान सुनकर वे बहुत प्रसन्न हुए । दयाधर्मका उनपर अच्छा प्रभाव पड़ा।
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