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________________ ३३४ आदर्श जीवन। वहाँके लोग आपके उपदेशोंसे धर्म भावमें और परोपकारक कार्यमें लीन हुए। अज्ञानकी विशेषताके कारण यहाँ आठ बरसोंसे दो धड़े चले आ रहे थे। आपने दोनों धड़ोंको समझाकर एक किया । ये धड़े फिर न हों और ज्ञानका प्रचार हो इस हेतुसे आपने वहाँ एक पाठशाला स्थापित करवाई। वह अबतक अच्छी दशामें चल रही है। बीजापुरमें आप पन्द्रह दिनतक रहे । इतने अर्सेमें मुनि श्रीविद्याविजयजी और मुनि श्रीविचारविजयजी भी राजी हो गये। इस दुखद घटनाको सुनकर मुनि श्रीललितविजयजी महाराज अपने शिष्य मुनि श्रीप्रभाविजयजीको साथमें लिए, डबल विहार कर, आपकी सेवामें, बीजापुरहीमें आ उपस्थित हुए। ये बीजापुरसे होशियारपुरके चौमासे तक आपकी सेवामें ही रहे । बंबई श्रीसंघके अति आग्रहसे, आपने इन्हें यह सोचकर बंबई चौमासा करनेके लिए भेजा कि, इनके जानेसे संघको तो प्रसन्नता होगी ही साथ ही बंबईके महावीर जैनविद्यालय' को भी मदद मिलेगी। गुरुदेवकी आज्ञा शिरोधार्य कर लंबी लंबी सफरें करते इन्होंने सं० १९८१ का चौमासा बंबईमें किया । स्पर्शना बलवती होती है। ये चौमासा समाप्त होने पर विहार करके वलसाडतक पहुँचे थे; परन्तु बंबई श्रीसंघके आग्रहसे और गुरुदेवकी आज्ञासे ये वापिस बंबई आये और सं० १९८२ का चौमासा भी बंबईमें ही किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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