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________________ आदर्श जीवन । ३२७ वहाँसे विहारकर दो दिन विसनगरमें विराजे । विसनगरके श्रीसंघकी भक्ति और उत्साह देखकर आपने फर्माया था कि,-" याद पंजाब न जाना होता और गुजरातहीमें रहना होता तो यहीं चौमासा करता।" विसनगरसे विहार कर आप पाटन पधारे। बड़े समारोहके साथ आपका स्वागत हुआ । पाँच दिन तक पूजा प्रभावनादि करके,संघने अपनी भक्ति प्रदर्शित की । श्रीसंघने आपसे वहीं चौमासा करनेकी विनती की; परन्तु आपको पंजाबमें जानेकी शीघ्रता थी इस लिए ५ दिनतक वहाँ निवासकर आपने विहार करने की तैयारी की । तब पाटनके आधिकारियों और नगरवासियोंकी तरफसे आपको सार्वजनिक व्याख्यान देने की विनती की गई । इस लिए आपको दो दिन तक और रहना पड़ा। आपने 'दानधर्म' इस विषय पर ऐसा प्रभावशाली व्याख्यान दिया कि अधिकारियों और प्रजाके दिल पसीज उठे । उन्होंने उसी समय दुष्काल पीडितोंके लिए सात हजार रुपयोंका चंदा कर लिया। मूबा साहबने वहीं कहा था कि,-करीब एक लाख रुपये तक दुष्काल पीडितोंके लिए जमाकर पाटन निवासियोंको अपनी महाराजके प्रति जो भक्ति है उसे प्रदर्शित करना चाहिए । और उनके पवित्र उपदेशको आचारणमें लाकर अपना जन्म सफल करना चाहिए। पंन्यासजी महाराज श्रीअजितसागरजी महाराजने सभामें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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