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आदर्श-जीवन।
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सेठ सखाराम दुल्लभदास और खंभातके सेठ पोपटभाई अमरचंद आदिने आकर आत्मारामजी महाराजसे विनती की कि यदि आप इस वर्ष पालीतानेहीमें चौमासा करेंगे तो बड़ा उपकार होगा। आपके वहाँ विराजनेसे अनेक जीवोंको विशेषरूपसे यात्राका और तीर्थ-भक्तिका लाभ होगा।
आत्मारामजी महाराजने फर्माया:---... आपलोगोंका कहना ठीक है, मगर वहाँ साधुओंका निर्वाह कैसे हो सकता है ? यद्यपि कहनेको वहाँ श्रावकोंके पाँच सौ घर हैं तथापि साधु साध्वियोंके लिए तो पाँच भी कठिनतासे होंगे। ऐसी हालतमें चौमासा कैसे हो सकता है ? "
पालीतानेकी उस वक्तकी हालतमें और इस वक्तकी हालतमें बहुत फर्क हो गया है। मगर जिन्होंने उस समयकी दशा देखी है वे जानते हैं कि, वहाँके श्रावक सभी गरीब थे। उनकी आजीविका यात्रियोंके आधार थी। इसके अलावा वे सभी यतियों-गोरजी के सेवक थे । बहुत समयसे वहाँके यतिनीने आनंदनी कल्याणजीकी पेढीमें भी अपना दखल जमा रक्खा था; इससे सभी श्रावक यतियोंसे डरते भी थे । यति लोग संवेगी साधुओंके साथ ऐसा सद्भाव नहीं रखते थे जैसा आज रखते हैं । इसलिए साधुओंको आहारपानी मिलना तो दूर रहा रह. नेको स्थान भी कठिनतासे मिलता था। ऐसी दशामें अनेक
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