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________________ आदर्श जीवन। सेठ हँस पड़े और स्नेहसे सिरपर हाथ फिराते हुए बोले:"कल्याण हो बेटा ! तुम शासनको दिपाओगे और अपने कुलको उज्जवल करोगे।" __ आप वापिस लौट आये । आत्मारामजी महाराजने पूछाः" सेठके पास हो आया ? " ___हाँ साहब ।" कह कर आप एक और जा बैठे और पढ़ने में लीन हुए। ___दूसरे दिन सेठ आये। उन्होंने सारी बातें महाराज साहबको सुनाई और प्रसन्नता प्रकट की। महाराजने भी कहाः" सेठजी ! मैंने जिस दिनसे इसे देखा है उसी दिनसे मेरे हृदयमें भी ये ही भाव हैं । ऐसे जीवोंहीसे शासनकी ज्योति अखंड जागती रहेगी।" इसी वर्ष ( यानी सं. १९४२ में ) पालीताणेके राजाके साथ जैन श्रीसंघका जो मुकदमा चलता था उसका फैसला हुआ। सिद्धाचलजीकी यात्राके लिए जानेवालोंसे राजा जो मूडका (प्रत्येक व्यक्तिसे टेक्स ) लिया करता था वह बंद हुआ और तीर्थों तथा यात्रियोंकी हिफाजतके लिए जैनोंसे, राजाको पन्द्रह हजार रुपये सालाना दिलायाजाना नक्की हुआ । ..इस निमित्तसे बड़ोदेके सेठ गोकलभाई दुल्लभदास, भरोचके सेठ अनूपचंद मलूकचंद, सूरतके सेठ कल्याणभाई, धूलियाके ... 2 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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