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________________ आदर्श जीवन । २९९ m दोनों हुए। हर्ष इस लिए कि आपसमें विरोध बढ़ना और फिजूल खर्चका होना रुक गया है और जैनों तथा जैनेतरोंमें संभव है कि, अमुक हदतक आपसमें भ्रातृभाव कायम हो जायगा । शोक इस लिए हुआ कि, जैनोंके लिए ऐसा कार्य करनेका प्रसंग आया जो उन्हें नहीं शोभता । अस्तु । समयकी बलिहारी है। यह बात भी इतिहास प्रसिद्ध पाटणके लिए ज्ञानियोंने देख रक्खी थी। - तुम पंचके फैसलेके विषयमें मेरी सलाह माँगते हो, इस विषयमें मेरी तो यही सलाह है कि, अब तुम जो कुछ काम करना चाहते हो वह मोतीचंद कापडिया सॉलिसिटर आदि जैनधर्मके पक्के हिमायती और कानूनके जाननेवालोंकी सलाह लेकर करना । आशा है तुम्हें जरूर सफलता होगी। मगर, यदि तुम सिर्फ कानूनके जाननेवालोंहीकी सलाह लोगे तो वे तुम्हें अपनी जेबें भरनेका ही रस्ता बतायँगे । मेरी ऐसी मान्यता है । तुम्हारे भेजे हुए पंचनामेको पढ़ते ही मालूम हो जाता है कि, उसको लिखते समय जैनधर्मके जाननेवाले किसी कानूनदाकी सलाह नहीं ली गई थी। यदि ली जाती तो यह लाइन उसमें और लिखी जाती कि, धर्ममें वाधा न पड़े इस प्रकारके फैसलेके लिए हम बँधते हैं। __ जब अपने यानी जैनसंघके नेताओंने लिख दिया और फैसला करनेका अधिकार भी जैनसंघके एक प्रसिद्ध पुरुषको दिया तब हमें अब ऐसा ही मार्ग लेना चाहिए जिससे उनके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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