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________________ आदर्श जीवन। २८१ 'पत्र भेजा गया था, उसका उपयोगी अंश हम यहाँ उद्धृत करते हैं, भारत वर्षके बीचमें, वल्लभ दीनदयाल । जिस नगरीमें जा रहें, करते उसे निहाल ॥ " + + + + + करीब नौ साल हुए हैं, जबसे श्री श्री मुनि महाराज श्रीवल्लभाविजयजी महाराज पंजाबसे गुजरातकी ओर पधारे तबसे उनके पश्चात् ही लगभग दूसरे सब मुनिराज भी पंजाबसे गुजरातकी ओर पधार गये हैं। इस नौ सालके अवसरमें साधु मुनिराजोंके पंजाबमें न होनेसे धर्मोन्नतिमें जो कुछ बाधा पड़ी है वह सब आप महानुभावोंपर विदित ही है । कई बार पंजाबकी तरफसे अलग अलग मुनिराजोंकी सेवामें पंजाब पधारनेकी विनती की गई मुनिराज श्रीवल्लभविजयजी और उनके शिष्योंके सिवाय अन्य सभी मुनिराजोंका यही संकल्प मालूम हुआ कि, वे पंजाबमें नहीं पधारेंगे । मुनिराज श्रीवल्लभविजयजीकी सेवामें भी उस तरफ़के लोगोंकी विनती प्रायः अधिक हुआ करती है और उनका प्रभाव पड़ता रहता है । इस लिए उनको पंजाब 'पधारने देर और बाधा हो जाती है। + + + पंजाबकी दशाका ध्यान करके, बिना मुनिराजोंके, कैसी हानि हो रही है यह सोचके, अंबालेके श्रीसंघने यह सलाह की है किपंजाबके हरेक शहरके कुछ मुखिया भाई इकट्ठे होकर जूनागढ़ जायँगे और पंजाबमें पधारनेकी विनती करेंगे ते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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