SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 313
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदर्श जीवन । आशा है कि महाराजजी अपने शिष्यों सहित पंजाबको शीघ्र ही पवित्र करेंगे + + + + + + " २८२ तदनुसार पंजाब संघके करीब एक सौ मुखिया आपके पास विनती करनेके लिए जूनागढ़ आये । आप कार्तिक सुदी १५ से ही गिरनार पर विराजमान थे । संघ मार्गशीर्ष वदी प्रथम ४ को आपके चरणोंमें उपस्थित हुआ। उस दिन पूजा, यात्रा, प्रभावनादि कर, दूसरे दिन संघने व्याख्यानके बाद जिस आधीनता, नम्रता और भक्तिपूर्ण हृदयके साथ पंजाबमें पधारनेकी आपसे प्रार्थना की, उसको देख सुनकर समस्त उपस्थित सज्जन आनंदाश्रुसे अपने नेत्रोंको तर किये विना न रह सके अनेकोंके तो उन अश्रुओंने कपोलोंको भी प्लावित कर दिया । बंबई श्रीसंघकी भी कई दिनोंसे साग्रह विनती थी । इस लिए आपने फर्मायाः - " यदि बंबई में कोई धर्म और संघकी उन्नतिका कार्य मेरे जानेसे होनेकी संभावना होगी तो मैं पहले बंबई जाऊँगा और वहाँसे सीधा फिर पंजाबकी तरफ विहार करूँगा । अब मुझे पंजाबमें आया ही समझो । " मार्गशीर्ष वदि ५ को आप जूनागढ़में पधारे और ६ को वहाँसे वैरावलकी तरफ विहार किया । लोग आपको मार्ग में अनेक स्थानोंपर ठहरने के लिए आग्रह करते थे; परन्तु वैरावलमें उपधानकी क्रिया हो रही थी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy