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________________ २८० आदर्श जीवन। जावन। मुख्य ध्येय, मुक्तिसाधनसे दूसरे नंबरका यदि कोई है तो वह शिक्षाप्रचार ही है । जहाँ कहीं जाते हैं और जहाँ कहीं आप चौमासा करते हैं वहीं पाठशाला पुस्तकालय आदि ज्ञानके साधन लोगोंके लिए उपस्थित किये विना नहीं रहते। ___ जूनागढ़में भी आपके उपदेशसे दो संस्थाएँ कायम हुई। एकका नाम है ' श्रीआत्मानंद जैनलायब्रेरी' और दूसरीका नाम है 'जैनस्त्रीशिक्षण शाला' इन संस्थाओंकी उद्घाटन क्रिया ता. २५-९-१६ के दिन आपहीके हाथसे हुई थी। लायब्रेरीके लिए संघने चंदा एकत्रित किया था और शाला डॉक्टर त्रिभुनवदास मोतीचंदके पुत्र सेठ प्रभुदास तथा छोटालालने, अपने स्वर्गीय बंधु जगजीवनदासके स्मरणार्थ, १००००) दस हजार रुपये देकर स्थापित करवाई थी। शालाका खर्चा इन्हीं दस हजारके ब्याजसे चलता है । __चौमासा समाप्त होने आया तब जामनगर श्रीसंघने विनती की कि-चौमासेमें हमारे अन्तरायके उदयसे आप न पधार सके; मगर अब जरूर पधारनेकी कृपा करें। ___ हमारे चरित्रनायक जबसे पंजाबको छोड़ आये तबसे पंजाबका श्रीसंघ बहुत व्याकुल था । पंजाबमें मुनियोंके अभाव श्रावक लोग पूर्णरूपसे धर्माराधन नहीं कर सकते थे । इस लिए हमारे चरित्रनायकके पास पंजाबमें पधारनेकी विनती करने जानेके लिए श्रीआत्मानंद जैनसभा अंबालाके सभापतिकी तरफसे पंजाबके प्रत्येक शहरके संघके पास जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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