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________________ आदर्श जीवन ! २६१ जानेसे उस संस्थाकी सार्वदेशिकता नष्ट हो जाती है; वह एक पक्षकी रह जाती है और उसका परिणाम यह होता है कि, वह थोड़े ही दिनोंमें बंद हो जाती है । अतः ऐसा नाम रक्खा जाय, जिसको सभी मानें और जिससे संस्थाकी सार्वदैशिकता नष्ट न हो । " इस बातको सबने माना और संस्थाका नाम ' श्रीमहावीर जैन विद्यालय ' रक्खा गया । विद्यालयके लिए ५०१३० ) रु० का चंदा भी हो गया । सें० १९७१ के ज्येष्ठ सुदी ८ के दिन आपके सभापति त्वमें स्वर्गीय आचार्य महाराज श्री १००८ श्रीमद्विजयानंद सूरिजी की जयंती मनाई गई थी । इस जयंतीमें आपने जो व्याख्यान दिया था वह अपूर्व है । उसे पढ़नेवालेके हृदय में स्वर्गीय गुरु महाराज के प्रति श्रद्धा हुए बिना नहीं रहती । वह व्याख्यान उत्तरार्द्धमें दिया गया है । चौमासेमें अनेक तपस्याएँ हुई । आनंद पूर्वक सं० १९७१ का अठाइसवाँ चौमासा बंबई में समाप्त कर आपने सूरतकी तरफ विहार किया । मार्गमें जीवोंको जिन धर्मामृत पिलाते हुए आप बगवाड़ा पधारे | इस इलाके के कई गाँवोंमें मारवाड़ी और गुजराती श्रावकों की जुदा जुदा बस्ती है । जब कोई जातीय कार्य होता है तब सभी बगवाड़ेहीमें जमा होते हैं । इस इलाके के श्रावकोंने यहीं एक भव्य जिनालय बनवा रक्खा है । मूल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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