SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदर्श जीवन । mmar-rrrrrrn - प्रभावना होगी। यह मेरी भविष्य वाणी रही।" आपने यथाक्रम सबको वंदना की । रात आनंदसे बीती। . दूसरे दिन जब आप भोजन करके वापिस लौटे तो सामने खीमचंदभाई खडे दिखाई दिये । आपके तो हाथके तोते उड़ गये; आनंद विषादमें परिवर्तन हो गया । हँसते हुए चहरे पर उदासीकी छाया आ पड़ी। आप बड़े चक्करमें पड़े। सांसारिक विवेक कहता था कि जिन्होंने तुझे पाला पोसा पढ़ा लिखाकर इतना बड़ा किया उन्हींका दिल दुखानेकी धृष्टता करता है ! वैराग्य कहता था,-ये सब खयालात फिजूल हैं । जीव कर्माधीन है । सांसारिक भलाई बुराई कर्मोंके रचे हुए आडंबर हैं । जब तक जीव इनमें फँसा रहता है तबतक उसे अपनी भलाईका खयाल नहीं होता । इसलिए संसारके जंजालसे छूटनेका यत्न कर । इस कर्मके जालमें न फँस । मगर खीमचंद भाईने आपको इस झंझटसे क्षणभरके लिए बचा दिया । वे ठहरे वणिक् | कहावत प्रसिद्ध है वणिग्गेहे च धर्तता' उसीसे उन्होंने अपना काम निकाला । उन्होंने निराशा व्यंजक करुण स्वरमें सूरिजी महारानसे अर्ज की,-" महाराज ! आप ज्ञानी छो! हुं मूर्ख आपने वधारे शुं कहुं ? छगन नासीने आपनी पासे आव्यो छे । एनी मरनी हशे तो हुं ना नथी कहेतो । घणी खुशीथी ए संयम ले । पण हाल एनी उमर बहुन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy