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आदर्श जीवन।
RAMANANA awaranaamaanine
केवल एक मधुर स्वमसी रह गई है । आज इनकी शक्ति छिन्न भिन्न प्रायः हो गई है; आज इनमें वह शक्ति नहीं रही है कि सिंहासनसे राजा उतर पड़ें, सेठ साहूकार भक्तिभावसे चरणोंमें गिर पड़ें। पंचमकाल का प्रभाव-ईर्ष्या, द्वेष, वैमनस्य, अहंमन्यता, ज्ञान न होते हुए भी महाज्ञानी होनेका आडंबर, दूसरोंकी उन्नतिसे जलन आदि-साधुओं पर भी पड़े बिना न रहे; जैनसाधुओंमें भी इसने धीरे धीरे पैर फैलाना शुरू किया । इस बातको हमारे चरित्रनायकने देखा । आपने सोचा, अब साधुओंमें, प्रत्येक साधुमें, प्राचीनकालके तेज, त्याग और तपस्याकी कमी हो गई है । इस कमीकी यदि पूर्ति न की जायगी तो साधुताका निर्वाह असाध्य साधना हो जायगी। अनेक दिनतक आप इस विषयका विचार करते रहे । अन्तमें आप इस निर्णय पर आये कि, साधुओंके संगठनसे यह शाक्त अक्षुण्ण रक्खी जा सकती है । तदनुसार आपने अपने माननीय वृद्ध पुरुष आचार्य श्रीविजयकमलमूरिजी महाराज, उपाध्यायजी श्रीवीरविजयजीमहाराज प्रवर्तकजी श्रीकान्तिविजयजी महाराज तथा मुनि श्रीहंसविजयजी महाराज, आदिकी सम्मतिसे ' मुनिसम्मेलन' स्थापित करनेकी योजना की। आपने सोचा इस समय स्वर्गीय गुरु महाराज श्रीआत्मारामजी महाराजके संघाड़ेका ही सम्मेलन और संगठन करना आवश्यक है यदि हम सफलता पूर्वक दो तीन बरस यह कार्य कर सकेंगे तो दूसरे संघाड़ेवाले
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