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________________ आदर्श जीवन । अठाई महोत्सव किया । मंडपमें आप उपदेशामृत बरसाते थे और उसको पान करनेके लिए झुंडके झुंड जैन और अजैन नरनारी आते थे। आस पास के गाँवोके भी अनेक लोग उस अमृतको पीने वहाँ आते थे । कोरलसे विहार करके लीलापुर, मेथी आदि कई जुदे जुदे गावोंमें विचरते हुए आप डभोई पधारे, क्योंकि डभोईके श्रीसंका बड़ा आग्रह था | एक मासतक आप डभोईमें वचनामृत बरसा बड़ोदेके लिए रवाना हुए और डभोईके संघ सहित बड़ोदे पहुँचे । बड़ोदे जानेका हेतु एक मुनिसम्मलेन स्थापित करने की इच्छा थी । साधु ' ' मुनि ' ' संयति ' ' यति ' " संवेगी ' इन नामोंमें और इनकी मुद्रामें असाधारण शक्ति है । इनके आगे राजा महाराजा नतमस्तक होते हैं; अमीर उम्रा सिर झुकाते हैं; सेठ साहूकार, धनी गरीब भक्ति भावसे चरणरज मस्तक पर चढ़ाते हैं और बड़े बड़े जालिम भी सम्मान से आँखें नीची कर लेते हैं । २३७ इस अनेक गुणान्वित अकेले साधु शब्दमें और उसकी मुद्रामें जब इतनी महिमा है; इतनी शक्ति है तब इनके धारक, - साधु नाम और वेषको अपने गुणोंसे अलंकृत करनेवाले जीव मेंमनुष्य में कितनी शक्ति होगी इसका अंदाजा पाठक सहजही में लगा सकते हैं । मगर अब यह बात इस पंचम कालमें - इस कलिकालमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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