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________________ आदर्श जीवन । munnammar- ~ स्वयमेव अपना संगठन कर लेंगे या अवसर देखकर अपना दायरा बड़ा कर दिया जायगा । इस विचारको परिणत करनेके लिए आपने जो पत्र साधुओंके पास भेजा, उसकी पूरी नकल यहाँ दी जाती है। ॐ अर्ह ! श्री १००८श्री मद्विजयानंद सूरिभ्यो नमो नमः । चरणकरणधारिमुनिभ्यो नमो नमः । श्री १००८ श्रीमद्विजयानंद मूरि सद्गुरुके सन्तानीय सर्व मुनिमंडलके पाद-पद्मोंमें मुनिचरणोंके दास वल्लभविजयकी सविनय प्रार्थना है कि,-शास्त्रकारोंने द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावानुसार उत्सर्गापवाद, विधिप्रतिषेधादि प्रतिपादन किया है सो आप महात्माओंको सुविदित ही है। आजकल समय कैसा है और समयानुसार अपना कर्तव्य क्या है सो भी आप महात्माओंसे छिपाहुआ नहीं है। सोते हुओंको जगाना उचित कहा जाता है मगर जागतोंको जगानेका प्रयास करना मूर्खताके सिवा अन्य कुछ नहीं कहा जाता है। तो भी जो कुछ मेरे मनमें आया है आप महात्माओंके चरणोंमें जाहिर कर देता हूँ और आशा करता हूँ कि, आप महात्मा मेरी मूर्खताका खयाल न कर तत्त्व दृष्टिकी ओर खयाल करेंगे। __ श्री १००८ श्रीमद्विजयानंद सूरि सद्गुरु-जो अपने परमोप्रकारी हो चुके हैं और जिनके उपकाराका बदला जन्म जन्ममें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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