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________________ २२८ आदर्श जीवन। तरहका वैर-विरोध यदि शान्त हो जाय तो चौमासी प्रतिक्रमण सफल हुआ माना जाय । (२) प्रति वर्ष पर्युषणके दिनोंमें वाँचा जाता है कि, उदायन राजाने, अपने अपराधीको राज्य देकरके भी जब चंडप्रद्योतने क्षमापना स्वीकार करी तभी उन्होंने अपना सांवत्सरिक प्रतिक्रमण सफल माना। (३) इस झगड़ेमें तो ऐसी कोई बात नहीं है कि जिससे किसीको कुछ देना पड़े। केवल मानरूपी तलवारको म्यानमें रखनेहीका काम है । और वह दोनों पक्षोंके योग्य है । कारण यह झगड़ा दोनों तरफकी खींचतानके कारण ही जातिमें एक गड़बड़ी रूप हो गया है । आशा है कि उदायनराजाका दृष्टान्त ध्यानमें रख, दोनों पक्ष अपने मनको शान्त कर श्रीजिनेश्वर देवकी आज्ञाके आराधक बनेंगे। (४) मैं साधु कहलाता हूँ। जातिके झगड़ेमें हाथ डालना या उसमें किसी तरहका दखल देना साधुताको शोभा नहीं देता। मगर दीर्घ दृष्टिसे विचार करने पर अन्तमें, धर्मसंबंधी कार्यों में वाधा पड़नेकी संभावना देख, पारस्परिक वैर-विरोध कम हो इस हेतुसे और पंचोंकी तरफ़के नेता दस आदमियोंकीजिनका हस्ताक्षर युक्त इकरारनामा मेरे पास है-प्रबल इच्छा और प्रेरणासे, इस विषयको मुझे अपने हाथमें लेना पड़ा है। (५) यह बात निःसंदेह है कि जहाँ दो पक्ष होते हैं वहाँ फैसला देनेवालेका फैसला, दोनों पक्षोंकी धारणाके अनुसार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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