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________________ आदर्श जीवन । होना असंभव है । तो भी दोनों पक्ष उसको माननेकी प्रतिज्ञा कर लेते हैं इस लिए वह फैसला किसी दूसरे रूपमें उतर कम ज्यादा प्रमाणमें दोनों पक्षोंको संतोष देनेवाला होता है । इस विषयमें भी जहाँतक हो सका इसी तरह किया गया है । इस लिए आशा है कि दोनों पक्ष संतोष धारण कर क्षुद्र बातोंको अपने दिलों से निकाल देंगे। ___ (६) इसमें कोई शक नहीं है कि, वह आदमी जिसके लिए यह बखेड़ा खड़ा हुआ है वास्तवमें अपराधी है और सजाके लायक है । कारण दोनों पक्षोंकी तरफसे और चुने हुए आदमियोंकी बातोंसे-फिर वे चाहे कोई अपेक्षा ग्रहण करें-करनेवाले आदमीका कार्य अनुचित तो समझा जाता ही है। और जब अनुचित कार्य हो गया तब उसका करनेवाला अपराधी हो ही चुका । अपराधीको यथोचित दंड मिले यह एक प्रकारकी नीति ही है । मगर अपराधीके पुण्यबलसे आज पर्वका दिन आ गया है। (७) पर्वके दिन सजा पाये हुए अपराधियोंको मुक्त कर देना, ऐसा एक शास्त्रका नियम है। और उसके अनुसार श्रीहेमचंद्रसूरि महाराजके उपदेशसे महाराजा कुमारपालने और श्रीहीरविजयसूरि महाराजके उपदेशसे बादशाह अकबरने, जो कुछ किया, उसको सभी जैन जानते हैं । इस लिए आज पर्वके दिन अपराधीको किसी भी तरहकी सजा देना मैं उचित नहीं समझता, बल्के अपराधीको सजासे मुक्त करना उचित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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