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आवर्श जीवन।
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जिस जुलूसमें करीब अस्सी साधु साध्वियाँ हों उसमें श्रावक श्राविकाएँ कितने होंगे इसका अनुमान सहजहीमें किया जा सकता है। आप बड़े चोटेके उपाश्रयमें ठहरे । धर्मोपदेश दिया । यहाँ कुछ दिन रहनके बाद गोपीपुराके श्रावकोंकी विनतीसे आप मोहनलालजी महाराजके नामसे मशहूर गोपीपुराके उपाश्रयमें जाकर ठहरे । वहीं आपने पालीनिवासी-जो थोड़े बरसोंसे बड़ोदेहीमें आ रहे थे-सुखराजजीको सं० १९६७ के फागन वदि छठके दिन दीक्षा दी । नाम समुद्रविजयजी रक्खा । श्रीसोहनविजयजीके शिष्य हुए।
सूरतसे, पालीताने चौमासा करनेके इरादेसे, आपने विहार किया। भावी प्रबल! आपको बीचहीमें रुकना पड़ा। मियागाँवमें आपका सं० १९६८ का पचीसवाँ चौमासा हुआ। मियागाँववालोंके और कठोरवालोंके आपसमें कुछ तनाजा था । उसको मिटानेके लिए आपने उपदेश दिया । मियागामवालोंने आपको न्यायाधीश नियतकर आपके फैसलेको स्वीकार करनेका सं० १९६८ के कार्तिक शुक्ला १३ के दिन एक प्रतिज्ञापत्र लिख दिया । तदनुसार आपने जो फैसला दिया वह यहाँ दिया जाता है
वंदे वीरम्। (१) श्रीमह्मवीर स्वामी तथा श्रीगुरु महाराज श्रीमद्विजयानंदमूरि आत्मारामजी महाराजको नमस्कार करके प्रकट करता हूँ कि, आज चौमासी चौदस है । इस लिए किसी भी
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