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________________ आदर्श जीवन। और किसी नामसे पुकारिए । भक्त प्रवर तुलसीदासजीने ठीक ही कहा है___ मूकं करोति वाचालं, पॉलङ्घयते गिरिम् । यत्कृपा तमहं वंदे, परमानंदमाधवम् ॥ उस साल आपके साथ निम्न लिखित उन्नीस साधु थे १ मुनि श्रीमोतीविजयजी, २ मुनि श्रीगुणविजयजी, ३ मुनि श्री विवेकविजयजी, ४ मुनि श्रीरूपविजयजी, ५ मुनि श्रीउत्तमविजयजी, ६ मुनि श्रीललितविजयजी, ७ मुनि श्रीलावण्यविजयजी, ८ मुनि श्रीसोहनविजयजी, ९ मुनि श्रीविमलविजयजी, १० मुनि श्रीउमंगविजयजी, ११ मुनि श्रीजिनविजयजी, १२ मुनि श्रीविज्ञानविजयजी, १३ मुनि श्रीविबुधविजयजी, १४ मुनि श्रीतिलकविजयजी, १५ मुनि श्रीविद्याविजयजी, १६ मुनि श्रीविचारविजयजी १७ मुनि श्रीविचक्षणविजयजी, १८ मुनि श्रीमित्रविजयजी, १९ मुनि श्रीउदयविजयजी। __ इनमेंसे मुनि श्रीमोतीविजयजी आपके गुरुभ्राता थे, मुनि श्रीउत्तमविजयजी मुनि श्रीमोतीविजयजीके शिष्य; श्री उदयविजयजी श्रीउत्तमविजयजीके शिष्य, श्रीगुणविजयजी स्वर्गीय श्रीथोभणविजयजी महाराजके शिष्य; मुनि श्रीरूपविजयजी उपाध्यायजी महाराज श्रीवीरविजयजीके शिष्य; मुनि १-जिसकी कृपासे गूंगा वाचाल हो जाता है और पागला गिरिको-पवर्तको लाँघ जाता है मैं उस परमानंद स्वरूप परमात्माको नमस्कार करता हूँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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