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________________ आदर्श जीवन | विनती करने आये थे; अमृतसरसे ही बड़ोदेका संघ आपसे विनती कर रहा था इस लिए आपने उनकी विनतीको: स्वीकार कर लिया । खंभातसे विहार करके आप नार, पेटलाद, बोरसद, छानी, होते हुए और लोगोंको उपदेशामृत पिलाते हुए सं. १९६७ का चौबीसवाँ चौमासा करनेके लिए बड़ोदे पधारे । बड़ोदावालों के दिलोंमें बड़ा उत्साह था, बड़ा अभिमान था कि आज उन्हींके शहरका एक बच्चा, वह बच्चा जिसने बड़ोदेके अंदर सूर्यके प्रथम दर्शन किये थे, जिसका शरीर बड़ोदेके अन्नजलसे परिपुष्ट हुआ था और जिसको बड़ोदेने पाल पोसकर बड़ा किया था, वही बड़ोदेका बच्चा आज महात्मा होकर, समस्त पंजाब, राजपूताना तथा काठियावाड़ में अपने नामका डंका बजाता, अपने गुरुकी जयध्वनिसे आकाशमंडलको गुँजवाता, जैनधर्मकी ध्वजापताका फर्राता और अपने मातापिताको धन्य धन्य कहलाता हुआ, वापिस बड़ोदे में आया है । खीमचंद भाईके आनंदकी तो सीमा ही नहीं थी । सं० १९६७ के वैशाख सुदी १०. गुरुवार के दिन बड़े समारोहके साथ आपका प्रवेश महोत्सव हुआ । कालंकी बलिहारी है । एक दिन वह था कि, आप इसी बड़ोदसे छिपकर भागते थे, एक दिन ऐसा आया - कि, बड़े उत्साहके साथ बड़ोदेने आपको सिर आँखोंपर उठा लिया । इसको देवगुरुकी कृपा कहिए, भाग्योदय कहिए या Jain Education International २२१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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