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________________ २२० आदर्श जीवन। दिया तब सब वाह वाह करने लगे । सार्वभौम जनधर्मका उपदेश सुनकर सभी कहने लगे, हमने अपनी उम्रमें ऐसा उपदेश आज पहले ही सुना है और इस शहरने सबसे 'पहले आपहीका ऐसा स्वागत किया है । अठाई महोत्सव पूजा प्रभावनादि अनेक धर्मकाये हुए । जब तक आप वहाँ रहे हमेशा उपदेशामृतकी वर्षा करते रहे । अनेक अजैन और जैन उस अमृतको पीकर तृप्त होते रहे। धोलेरासे विहार करके आप खंभात पहुँचे । सेठ पोपट भाई अमरचंद आदि खंभातके श्रीसंघने आपका आशातीत स्वागत किया । आपने भी आठ दिन वहाँ रह, उनके आत्माको उपदेशामृत पिलाकर तृप्त किया । पोपटभाईने पाली तानेमें आपको टोपी पहने स्वर्गीय आचार्य महाराजके साथ सं० १९४३ में जब उनका चौमासा पालीतानेमें था, देखा था । तेईस बरसमें परिवर्तित अपूर्व रूप देखकर पोपटभाईकी आँखोंसे हर्षाश्रु बहने लगे । इक्कीस बरस पहले जो एक साधारण भाविक आत्मा था वही आज एक महापुरुष है, यह देख कर उन्हें आल्हाद हुआ । इस विचारने उन्हें परम संतुष्ट किया कि आत्माओंको ऐसे महान जैन धर्म ही बना सकता है । उन्होंने संघको इकट्ठाकर आपसे वहीं चौमासा करनेकी विनती की; परन्तु क्षेत्रस्पर्शना वहाँ की न थी, इस लिए आप वहाँ चौमासा न कर सके । कारण, खीमचंद भाई और बड़ोदेके दूसरे श्रावक आपसे बड़ोदेमें चौमासा करनेकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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