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आदर्श जीवन ।
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है या नहीं दूसरे किसीको यह कहनेका मौका नहीं मिलता कि, महाराज झटसे हरेकको मूंड डालते हैं । अस्तु । ___ भँवरसिंहजीके भाई और उनकी माता पालनपुर आये। उन्होंने भँवरसिंहनीको बहुत समझाया मगर उनका मन तो दृढ था। वे एकके दो न हुए । आखिर हार कर उनके बड़े भाई तो चले गये । उनकी माताने हर्षविषादपूर्ण हृदयके साथ उन्हें आज्ञा दी । हर्ष इसलिए था कि, आज उनका लाल संसारका त्याग कर स्वपर कल्याणमें लीन होता है । विषाद इसलिए था कि आज उनका लाल उन्हें छोड़ रहा है । भँवरलालजीकी माता और उनके दो छोटे भाई दीक्षा होने तक पालनपुरहीमें रहे ।
दीक्षा-महोत्सव बड़े ठाटसे हुआ। सं० १९६६ के आषाढ़ सुदिमें दीक्षा हुई। नाम विचक्षणविजयजी रक्खा गया । हमारे चरित्रनायकके शिष्य हुए।
दीक्षाके समय पालनपुरके नवाब साहब भी आये थे। उन्होंने भँवरलालजीकी मातासे कहा:--" तुम्हारा लड़का फकीर होता है। तुम्हें इसका कुछ दुःख नहीं है।"
उनकी माताने जवाब दिया:-" इसमें दुःख काहेका है ? मुझे इस बातकी खुशी है कि मेरा बेटा आज प्रभुके चरणों में लीन हुआ है और उसने इस असार संसारको छोड़ दिया है।" . नवाब साहबको खुशी हुई । उन्होंने भी उल्लासके साथ
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