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________________ आदर्श जीवन | यजीका माँडलिया योगोद्वहन करानेके लिए, पाँचोंके साथ महेसाने पंन्यासजी श्रीसिद्धिविजयजी महाराजके पास भेजा। पाँचों मुनिराजोंकी बड़ी दीक्षा कराकर मुनि श्रीललितविजयजी वापिस आपकी सेवामें आ गये । आपके बड़े शिष्य मुनि श्रीविवेकविजयजी महाराज भी अपने शिष्य उमंगविजयजी सहित आपकी सेवामें पालनपुर आ गये । सारे शहरमें आनंद ही आनंद छा रहा था । इस आनंदमें अभिवृद्धि करनेवाली एक बात और हुई । कलकत्तेसे बाबू भँवरसिंहजी, दिल्लीनिवासी लाला दलेलसिंहजीके साथ दीक्षा लेनेकी गरजसे आपके पास आये | आपने उसी समय उनकी माताके पास मुर्शिदाबाद तार दिया कि, भँवरसिंह यहाँ दीक्षा लेनेके लिए आया हुआ है । आपकाआपका ही नही स्वर्गीय महाराज श्री आत्मारामजी महाराजके संघाड़ेके प्रायः सभी साधुओंका - यह दस्तूर है कि, जब कोई सज्जन आपके पास दीक्षा लेने आते हैं आप तत्काल ही उनके वारिसों को सूचना दे देते हैं । जब उनके वारिस आते हैं तब दीक्षा लेनेके अभिलाषीको उनके सिपुर्द कर देते हैं और उनसे कह देते हैं कि, इनको समझाओ और पूछताछ कर लो। हम तुम्हारी आज्ञा के विना दीक्षा नहीं देंगे । जब उनके कुटुंबसे दीक्षा देनेकी इजाजत मिलती है तभी आप दीक्षा देते हैं । इससे दो लाभ होते हैं । एक तो दीक्षा लेनेवालेकी जाँच हो जाती है कि, वास्तवमें यह वैरागी २०८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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