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________________ आदर्श जीवन । २०७ साधुओंकी सम्मति ले आपने पालनपुरहीमें चौमासा करनेकी सम्मति दे दी। ... वह कौनसा उकंदा है जो वो हो नहीं सकता ? हिम्मत करे इन्सान तो क्या हो नहीं सकता ? श्रावकोंकी इच्छा पूर्ण हुई। वे जयजयकार करते हुए अपने अपने घर जाकर मीठी नांदमें सोये । आपने भी आराम किया। - सवेरे ही आपने मुनि श्रीमोतीविजयजीको एक पत्र दिया। उसमें पालनपुरका हाल दरज कर उन्हें वापिस आनेके लिए लिखा था। वे उस समय ऊँझामें थे। ऊँझाके श्रीसंघको ये समाचार मिले । उसने उनसे ऊँझामें ही चौमासा करनेकी विनती की। उन्होंने आपकी आज्ञा लानेके लिए कहा। इस पर वहाँके कुछ मुखिया पालनपुरमें आपके पास गये । यद्यपि आप चाहते थे कि, सभीका चौमासा साथ ही हो, मगर श्रीसंघका आग्रह देखकर आपको इजाजत देनी पड़ी। खीमचंदभाई आदि बड़ोदेके जो सज्जन हमारे चरित्रनायकको विहार करानेके लिए ठहरे हुए थे, पालनपुरमें यह उत्साह और यह लाभ देख, वंदना कर चले गये। __ चौमासा जब पालनपुरहीमें स्थिर हो गया तब आपने मुनि श्रीललितविजयजी महाराजको, विज्ञानविजयजी, विबुधविजयजी, तिलकविजयजी, विद्याविजयजी और विचारविज १ कठिन प्रश्न, गाँठ; 2-हल होना, खुलना; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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