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________________ १९८ आदर्श जीवन । "हम सब सेवक यह प्रार्थना करनेको आये हैं कि आप इन तीनों वैरागियोंको अजमेरमें दीक्षा दें। खास फायदा वहाँ यह होगा कि अजमेरमें स्थानकवासी भाइयोंने कॉन्फरन्सका जल्सा कायम किया है । तारीख वही है जो दीक्षाकी है। कॉन्फरन्सके मौके पर हजारों स्त्री पुरुष वहाँ मौजूद होंगे इससे सैंकड़ों गामोंमें घूमकर जो उपकार आप श्रीजी वर्षोंमें कर सकेंगे वह तीन दिनोंमें हो सकेगा।" सचेतीजीने यह भी अर्जकी कि उस मौकेपर हम मूर्तिपूजक संप्रदायकी कॉन्फरन्सका अधिवेशन कायम करनेकी योजना भी करना चाहते हैं, इस कार्यमें हमारे सर्व भाई मददगार हैं और अगर गुरु महाराज अजमेर पधारें तो ४०००० रु० तकका खर्च मैं अकेला करनेको तैयार हूँ। - हमारे चरित्रनायक इसकार्यमें बड़ा लाभ समझते थे मगर जयपुरके श्रीसंघको वचन दे चुके थे । जब जयपुरके ..श्रीसंघको पूछा तो उसने कहा:-"अपने हाथमें आया हीरा कौन दूसरेको दे देता है।" अजमेरके श्रीसंघकी आशा अपूर्ण रह गई । दीक्षा जयपुरमें ही हुई। ... ___ जयपुरसे विहार कर आप अजमेर पधारे । बड़े उत्साह और आडंबरके साथ श्रावकोंने आपका नगरप्रवेश कराया। करीब दस रोजतक आप वहाँ विराजे और लोगोंको उपदेशामृतका पान कराते रहे। अजमेरसे विहार करके आप नयेशहर (ब्यावर) पधारे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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