________________
आदर्श जीवन।
१९७
था उस समय किसी इर्षालुने सर्कारमें अर्जी दी कि, जिन लड़कोंको दीक्षा दी जानेवाली है उनके माता पिताको इसकी बिल्कुल खबर नहीं है । यह काम चुपके ही चुपके हो रहा है। इस लिए सरकार इसकी जाँच करे । दैवयोगसे वह दख्वास्त मुन्सिफ साहबके पास ही जाँचके लिए पहुँची । उन्होंने उस दख्खास्तको ईर्ष्याका परिणाम समझकर दफ्तर दाखिल करा दिया। उन्हें मालूम था कि, दीक्षामहोत्सव बड़ी धूमधामसे हो रहा है, रोज जुलूस निकलते हैं। सारा शहर इससे वाकिफ है। इतना ही क्यों अच्छर मच्छरके ताऊजी (पिताके बड़े भाई) जयपुरमें आये थे । वे अच्छर मच्छरकी जायदादका प्रबंध स्वयं करके उन्हें दीक्षा लेनेकी आज्ञा दे गये थे। मुन्सिफ साहब भी उस समय मौजूद थे; क्यों कि यह बात व्याख्यानके समय ही हुई थी । मुन्सिफ साहबने पासमें बैठकर दीक्षाकी सारी क्रियाएँ देखी थीं।
हमारे चरित्रनायकने जयपुरसे विहार किया तब वे दो तीन माइल तक साथमें गये थे । और भी सैकड़ों मनुष्य आपको पहुँचाने गये थे। . जिस समय जयपुरमें तीन भाइयोंकी दीक्षाकी तैयारियाँ हो रही थीं उस वक्त अजमेरनिवासी सेठ हीराचंदजी सचेती कुछ अन्य सधर्मी भाइयोंको साथ लेकर हमारे चरित्रनायकके चरणोंमें उपस्थित हुए और अर्ज करने लगे कि-" कृपानिधान हम आपकी खिदमतमें इस लिए हाजिर हुए हैं कि कृपाकर आप हमारी प्रार्थना पर ध्यान दें।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org