SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदर्श जीवन । अपने पास सिर्फ इतनासासामान रखते हैं जितनेको वे उठाकर ले जा सकते हैं और जो कभी किसी गृहस्थसे अपनी चीजें नहीं उठवाते । इनका धर्म है, किसी जीवको किसी भी दशामें कष्ट न पहुँचाना । हर समय उनकी भावना रहती है'शिवमस्तु सर्वजगतः, परहितनिरता भवंतु भूतगणाः । दोषाः प्रयान्तु नाशं, सर्वत्र सुखी भवतु लोकः ॥' इस भावनाको भानेवाला, इस मंत्रकी साधना करनेवाला क्या कभी किसीका विरोधी हो सकता है ? यद्यपि इसकी साधना कठिन है तथापि इन महात्माओंने इसको साधा है।" पुलिसवाले बोले:-" आप बजा फर्माते हैं। तीन राजसे हम बराबर यहाँ आरहे हैं । हमने इन साधुओंको आपके फर्मानेके अनुसार बिलकुल ही बेलाग और दूसरोंके हितका उपदेश देनेवाले ही देखा है। हमने पहले दिन जब आपको यहाँ बैठे देखा तभी समझ लिया था कि, यहाँ ऐसा वैसा उपदेश कभी न होता होगा । यदि होता तो आप यहाँ हरगिज न आते । इन महात्माओंके शब्दोंमें जादू है। हम इनके उपदेशपर मुग्ध हैं । हमें जाँचके बहाने ही इन महात्माओंका उपदेश सुननेको मिल जाता है।" ___ मुन्सिफ साहबने कहा:-" बहुत अच्छा करते हो । उपदेशके माफिक कुछ अमल भी किया करो । अमलके बिना सुना न सुना एकसा है।" .. जिस समय अच्छर मच्छरादिका दीक्षा महोत्सव हो रहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy