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आदर्श जीवन ।
.. पुलिसने साहबको सारी बातें समझा दी, तो भी उसके दिलसे खटका न निकला । उसने कहा:-" मुमकिन है यही बात सच हो, तो भी सावधान रहना अच्छा है । तुम इस बातका खयाल रखना कि, वे यहाँ क्यों आये हैं ? क्या करते हैं ? लोगोंको क्या उपदेश देते हैं ? कहाँ ठहरे हैं आदि ।"
मुन्सिफ महाशय और पुलिस अफ्सरका आपसमें अच्छा स्नेह था । उसने सारी बातें मुन्सिफ साहबसे कहीं । मुन्सिफ साहब हँसे और बोले:-" अच्छी बात है । मैं खुद इसकी जाँच करूँगा। तुम जानते हो कि, मुझे धर्मसे ज्यादा प्रेम है। धर्मकी बातें सुनना मैं बहुत ज्यादा पसंद करता हूँ। वैसे भी कोई बात होगी तो मुझे जाँच तो करनी ही पड़ेगी, इस लिए मैं स्वयं उनके व्याख्यानमें जाऊँगा। यदि वे वास्तविक साधु होंगे तो मुझे धर्मकी प्राप्ति होगी और यदि वे ढौंगी होंगे तो भविष्यमें मुकदमेके समय मुझे कम कठिनता होगी।" - दूसरे दिन सवेरे ही मुन्सिफ साहब व्याख्यानमें चले गये। एक बार लोगोंके दिलमें भय पैदा हुआ । भय इस लिए हुआ कि, उन्होंने लक्ष्मीचंद्रजीके द्वारा सारी बातें सुनी थीं; मगर थोड़ी देरके बाद उनका भय जाता रहा । उन्हें मुन्सिफ साहबके बोल चालसे मालूम हुआ कि, वे किसी बुरे इरादेसे यहाँ नहीं आये हैं। जबतक व्याख्यान होता रहा वे ध्यानपूर्वक सुनते रहे । अनेक लोग उनकी तरफ़ एक टक देख
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