SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदर्श जीवन । १९२ .......momorrowroorama MR.RJhar...rr.MRANNYM सिवा और भी कई नंगे सिर रहा करते हैं। जैन साधुओंके संबंधमें तो उसे जरासी भी जानकारी न थी । अतः उसने समझ लिया कि ये बंगाली ही हैं । बंगले पर पहुँचकर उसने मूचना दी कि, लक्ष्मीचंद्रजीके यहाँ कुछ बंगाली हैं । वे कौन हैं और क्यों आये हैं ? इसकी जाँच करो। पुलिसने लक्ष्मीचंद्रजीको बुलाया और पूछा:-" तुम्हारे घरपर बंगाली महमान कौन हैं ?" लक्ष्मीचंद्रजीने कहा:-" मेरे घर पर तो कोई बंगाली महमान नहीं है।" पुलिस अफ्सर बोला:-" हैं क्यों नहीं ? आप उनके साथ स्टेशनसे आ रहे थे तब साहबने आपके साथ उन्हें,, देखा था, इतना ही नहीं आपने, साहबसे सलाम भी की थी।" लक्ष्मीचंद्रजी मुस्कुराये और बोले:-" ओह ! साहबको बड़ा भ्रम हुआ है। जिनके साथ आते हुए साहबने मुझे देखा था वे तो हमारे गुरु महाराज थे । स्टेशनके पास पुगलियोंकी ( पुगलिया ओसवालोंका एक गोत्र है) निशियाँ है। उसमें जिन मंदिरके दर्शन कराने के लिए मैं गुरु महाराजके साथ गया था और उन्हींके साथ वापिस आ रहा था । आप जानते हैं कि, जैनसाधु नंगे सिर ही रहते हैं और उन्हें नंगे सिर देख कर साहबने बंगाली समझ लिया है " ___ असली बातको समझ कर पुलिस अफ्सर खिल खिला कर हँस पड़ा और लक्ष्मीचंद्रजीसे बोला:-" आप जाइए मैंने मतलब समझ लिया है।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy