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आदर्श जीवन ।
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सिवा और भी कई नंगे सिर रहा करते हैं। जैन साधुओंके संबंधमें तो उसे जरासी भी जानकारी न थी । अतः उसने समझ लिया कि ये बंगाली ही हैं । बंगले पर पहुँचकर उसने मूचना दी कि, लक्ष्मीचंद्रजीके यहाँ कुछ बंगाली हैं । वे कौन हैं और क्यों आये हैं ? इसकी जाँच करो।
पुलिसने लक्ष्मीचंद्रजीको बुलाया और पूछा:-" तुम्हारे घरपर बंगाली महमान कौन हैं ?"
लक्ष्मीचंद्रजीने कहा:-" मेरे घर पर तो कोई बंगाली महमान नहीं है।"
पुलिस अफ्सर बोला:-" हैं क्यों नहीं ? आप उनके साथ स्टेशनसे आ रहे थे तब साहबने आपके साथ उन्हें,, देखा था, इतना ही नहीं आपने, साहबसे सलाम भी की थी।"
लक्ष्मीचंद्रजी मुस्कुराये और बोले:-" ओह ! साहबको बड़ा भ्रम हुआ है। जिनके साथ आते हुए साहबने मुझे देखा था वे तो हमारे गुरु महाराज थे । स्टेशनके पास पुगलियोंकी ( पुगलिया ओसवालोंका एक गोत्र है) निशियाँ है। उसमें जिन मंदिरके दर्शन कराने के लिए मैं गुरु महाराजके साथ गया था और उन्हींके साथ वापिस आ रहा था । आप जानते हैं कि, जैनसाधु नंगे सिर ही रहते हैं और उन्हें नंगे सिर देख कर साहबने बंगाली समझ लिया है " ___ असली बातको समझ कर पुलिस अफ्सर खिल खिला कर हँस पड़ा और लक्ष्मीचंद्रजीसे बोला:-" आप जाइए मैंने मतलब समझ लिया है।"
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