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________________ आदर्श जीवन। wond Newwvvv जयपुरमें खरतरगच्छवालोंका बड़ा जोर था । तपगच्छके साधुओंका टिकाव वहाँ कठिनतासे हो सकता था। मगर जब आप वहाँ पहुँचे हैं तब सभी गच्छवालोंने आपका बड़ा सत्कार किया । आपके पुण्योदयने और आपके एकता वर्द्धक, जैनधर्मके शुद्ध उपदेशने सभीको आपका भक्त बना दिया। जो एक बार आपकी वाणी सुन लेता वह फिर उसे सुननेके लिए व्याकुल रहता । हरेक कहता,- अपने जीवनमें पहली ही बार मैंने ऐसे मधुर भाषी और सभी गच्छवालोंको अपने अपने गच्छानुसार धर्मक्रिया करते हुए संपसे रहनेका उपदेश देने वाले साधु देखे हैं। आप ढाई महीने तक जयपुरमें रहे । जब कभी आप विहार करनेको उद्यत होते लोग कहते अभी और थोड़े दिन विराजिए। कौन अमृत पिलानेवालेको जाने देना चाहता है ? प्रति दिन मंदिरोंमें पूजा प्रभावना होती थी। आज इस मंदिरमें है तो कल उस मंदिरमें । पूजाके वक्त एक समा बंध जाता था । जिस समय साधुमंडली अपने सुरीले कंठोंसे पूजा गाती सभी आनंदमें झूमने लग जाते । पं० श्रीललितविजयजीका गला तो मोहन मंत्र था। इतना मधुर और इतना लोचदार ! श्रोता मंत्रमुग्ध सर्पकी भाँति झूमते रहते । तीन चार घंटे इस तरह निकल जाते जैसे दिनभर परिश्रम करनेवाले मनुष्यकी रात एक ही झपकीमें निकल जाती है ! पूजाके समय श्वेतांबर श्रावकोंके सिवा दूसरे भी अनेक स्त्रीपुरुष मंदिरमें जमा हो जाते थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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