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आदर्श जीवन।
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जब आप विहार करनेका दृढ इरादा कर चुके तब जयपुरके संघने विनती की कि, आपके साथ जो दीक्षा लेनेवाले भाग्यशाली हैं उन्हें यहीं दीक्षा देकर हमें अनुग्रहीत कीजिए । आपने श्रावकोंकी इस विनतीको स्वीकार कर लिया। __ संयमलेनेवालोंके वारिसोंको सूचना दी गई। वे आये मगर दीक्षाके उत्सुकोंको वैराग्यमें दृढ देखकर, आज्ञा दे चले गये ।
पन्द्रह दिनतक बड़ी धूमधामसे उत्सव हुआ । पंजाब, मारवाड़, मेवाड़, मालवा और गुजरात आदि सभी स्थानोंके श्रावक वहाँ जमा हुए थे । बाहरसे आये हुए लोगोंमें पंजाबियोंकी संख्या अधिक थी। जयपुरके संघने सभी अतिथियोंका अच्छा आदरसत्कार किया था । दीक्षा मोहनवाड़ीमेंजो गलता दर्वाजेके बाहिर है-हुई थी। हजारों नरनारी मोहनवाडीमें सवेरेहीसे जाकर जमा हो गये थे। पंजाबी श्रावक दीक्षा लेनेवालोंकी पालकियाँ उठाकर गये थे। दीक्षाके दिन नारियलकी प्रभावना हुई थी। कुल नव हजार नारियल खर्च हुए थे । दीक्षामहोत्सवका सारा खर्चा जयपुरनिवासी सेठ फूलचंदजी कोठारीकी माता इन्द्रबाईने किया था । दीक्षा सं. १९६५ के चैत्र वदि ५ के दिन हुई थी। अच्छर और मच्छरका नाम क्रमशः विद्याविजयजी और विचारविजयजी रक्खा गया । दोनों हमारे चरित्रनायकके शिष्य हुए । कृष्णचंद्रका नाम तिलकविजयजी रक्खा गया। वे पं० श्रीललितविजयजी महाराजके शिष्य हुए।
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