________________
आदर्श-जीवन ।
शान्त होने पर डसूके भरते बोले,-" माँ ! हमें किसके भरोसे छोड़ जाती हो ? " ___माँके हृदय में मोहकी एक आँधी उठी । सन्तान-स्नेहके तूफान में धार्मिक ज्ञानके कारण शान्त बना हुआ चित्त क्षुब्ध हो उठा । प्रसन्नतापूर्ण चहरे पर म्लानता दिखाई दी। आँखों में पानी भर आया । एक दीर्घ निःश्वास डालकर बोली:-“अहंत !"
इस निःश्वासके साथ ही मानों सारी क्षुब्धता निकल गई। चहरेपर. फिरसे प्रसन्नता दिखाई दी । वे बोली:-" छगन ! "
इस शब्दने हमारे चरित्र नायकको सजग किया। बचपनसे माता संसारकी असारताके जो उपदेश दिया करती थीं वे एक एक करके आपकी आँखोंके सामने खड़े होने लगे। अविनाशी आत्माकी भावना, विनाशी पुद्गल धर्मके विचार, कर्मोदयके कारण होनेवाला संसारके परिवर्तनका खयाल सभी आपको स्थिर करने लगे । आपने माताके संबोधनका अर्थ समझा, आँखें पौंछ डालीं और पूछा:-" माँ क्या आज्ञा है ? " - माता स्नेहगद्गद स्वर में बोली:-" बेटा ! अविनाशी सुखधाममें पहुँचानेवाले धनको प्राप्त करने और जगत्का कल्याण करने में अपना जीवन बिताना ।" - माताने एक निःश्वास छोड़ी; अहंत शब्दका उच्चारण किया और उसके साथ ही उनका जीवनहंस भी उड़ गया ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org