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________________ आदर्श-जीवन । - - - थे महालक्ष्मी, जमुना और रुक्मणी; पिताका नाम श्रीयुत दीपचंदभाई था और उनका देहान्त आप जब छोटी उम्र में थे तभी हो गया था। आपकी माता श्रीमती इच्छाबाई आपसे बहुत ही ज्यादा स्नेह रखती थीं। धर्मात्मा भी अपने शहर में अद्वितीय थीं । अपनी धर्मभावनाओंका सारा ख़ज़ाना वे अपने स्नेहभाजन इसी पुत्रको दे गई थीं। इच्छाबाईका अन्त समय निकट था । मनुष्य--आयुरूपी कर्म-रज्जूका एक एक तार वेगपूर्वक प्रत्येक श्वासोश्वासके साथ टूटता जा रहा था । धर्मात्मा देवी बड़ी कठिनताके साथ शब्दोच्चार कर सकती थीं। जिस समय उनके मुँहसे शब्द निकलता 'अहंत ' । प्यारी सन्तान सामने विलखका रो रही थी। स्वजन सम्बंधी व्याकुलतासे देवीकी ओर देख रहे थे। देवी सबको हाथ उठाकर अपनी अन्तिम अवस्थामें भी आश्वासन दे रही थीं और मुखसे अहंत शब्दका उच्चारण कर रही थी। इस शब्दोच्चार और स्वाभाविक शान्तिसे जो आश्वासन मिलता था वह संभवतः अनेक व्याख्यानों और उपदेशोंसे भी नहीं मिल सकता था। देवी थोड़ी देर हमारे चरित्रनायककी ओर स्थिर दृष्टिसे देखती रहीं और बोलीं,-" छगन ! तू भी इतना दुर्बल ? " ___ आप अबतक धीरे धीरे आँसू बहा रहे थे अब अपने आपको न सम्भाल सके उच्च स्वरमें करुणकंदन करने लगे । कुछ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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