SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदर्श जीवन । महात्माने कुतूहलके साथ पूछा:-" तब कौनसा धन चाहता है ? "" (6 "" बालक, वह धन जिससे अनन्त सुख मिले । -- महात्माको बालक बुद्धिकौशल पर आश्चर्य हुआ । उन्होंने ध्यान से बालकके चहरेकी ओर देखा । ललाट पर भावी जीवनकी उज्ज्वल रेखाएँ दिखाई दीं । उन्होंने देखा, - इस महान आत्माद्वारा समाजका कल्याण होगा; इसके द्वारा धर्मका उद्योत होगा; इसके द्वारा शासनकी प्रभावना होगी। महात्मा बोले, - वत्स ! योग्य समय पर तेरी मनोकामना पूरी होगी । .<< 99 बालकका मुखकमल आनंदसे खिल उठा । भक्तिपूर्ण हृदयसे महात्माको नमस्कार कर वह धीरे धीरे चला गया । Jain Education International X X हमारे इस चरित्र नायक ही यह बालक था और महात्मा थे जगत्पूज्य श्री श्री १००८ श्रीमद्विजयानंदसूरिजी महाराज । हमारे चरित्र नायकका जन्म बड़ोदेमें, सं० १९२७ के कार्तिक सुदी २ ( भाईदूज ) के दिन हुआ था । आपका गृस्थावस्या में नाम छगनलाल था । आपके चार भाई थे । सबसे I आप ( छगनलाल ) और बड़े हीराचंद, दूसरे खीमचंद तीसरे -सबसे छोटा मगनलाल । आपके तीन बहिनें थीं। उनके नाम X For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy