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________________ आदर्श-जीवन । - उसी समयसे आप माताकी आज्ञाका पालन कैसे हो इसकी चिन्तामें रहते थे। आप में सामान्य बालकोंसा न खिलाड़ीपन था न उधम । एक गंभीर शान्तिसे आप अपने दिन निकालते थे । आपकी इस गंभीरताको देखकर लोग आपके विषयमें तरह तरहके अनुमान बाँधा करते थे। सं० १९४० की बात है। श्रीआत्मारामजी महाराजके सिंघाडेके साधु मुनिराज श्रीचंद्रविजयजी महाराजका चौमासा, बड़ोदेमें, पीपलासेरीके दर्वाजे पर हुआ था। हमारे चरित्रनायकका घर भी पीपलासेरीहीमें था । इसलिए आप प्रायः चंद्रविजयजी महाराजके पाप्त आया जाया करते थे । पूर्वजन्मके सुकृत, माताके जीवनव्यापी धर्मोपदेश और साधु महाराजकी संगति तीनोंने मिलकर आपके मनको संसारसे उदास किया; आपके हृदयमें दीक्षा लेने की इच्छा हुई । दूसरे चार साथियोंने आपके साथ ही दीक्षित होनेका विचार प्रदर्शित कर इस इच्छाको कार्यके रूपमें परिणत करनेके लिए आपको दृढ बना दिया। वे चार साथी थे,-हरिलाल, साँकलचंद खूबचंद खंभाती,. वाडीलाल लालभाई गाँधी और मगनलाल मास्तर । मगनलाल अंग्रेजीका अध्ययन करते थे और अनेक प्रकारकी सांसारिक उच्च आशाएँ रखते थे; उन्हें उनसे छूटना था। वाडीलाल विवाहित थे और उन्हें पत्नीके मोह-पिंजरेसे निकल भागना था; हरिलाल जौहरी हीराचंद ईश्वरदासके यहाँ रहते थे लोग उनको 'सूबा' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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