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________________ आदर्श जीवन । होते हुए अंबाले पहुँचे । आप जिस दिन अंबाले पहुँचे थे उसी दिन दिल्लीकी ओरसे विहार करके आचार्य महाराज १००८ श्रीविजयकमलमूरिजी और उपाध्यायजी महाराज श्री १०८ श्रीवीरविजयजी भी अपने साधुमंडल सहित अंबाले आये थे । दोनोंकी शहरके बाहर भेट हो गई। बड़े जुलुसके साथ दोनोंका नगरप्रवेश कराया गया । आप चार पाँच रोज वहाँ रहकर वहाँसे दिल्लीकी ओर विहार कर गये। खीमचंदभाईने अब पीछा छोड़ा ___ आप अंबालेसे विहार करके दिल्ली पधारे। उस समय आपके साथ श्रीविमलविजयजी,श्रीकस्तूरविजयजी,श्रीसोहन विजयजी, श्रीविज्ञानविजयजी और श्रीविबुधविजयजी थे । आपने चाहा था कि, इस साल गुजरातहीमें चौमासा करेंगे और हो सका तो इसी साल नहीं तो अगले साल दादाकी यात्रा जरूर करेंगे। दिल्लीके संघने निश्चय किया कि, चाहे कुछ भी हो जाय हम आपको इस साल दिल्लीमें ही रक्खेंगे । चिन्तामणि रत्नको पाकर कौन छोड़ना चाहता है ? दोनों ओर संघर्ष था । एक ओर गुरुभक्ति थी, दूसरी तरफ गुजरातके श्रावकोंकी-जिसमें भी खास करके खीमचंदभाई और बड़ोदाके श्रीसंघकी-विनती, साधुओंका शीघ्र ही गुजरातमें जाकर तीर्थयात्रा करनेका आग्रह और आपकाखुदका-जितनी हो सके उतनी जल्दी करके दादाकी यात्रा करनेका विचार। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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