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आदर्श जीवन ।
मजिस्ट्रेटने जुगलकिशोर के नामका वारंट दे दिया । कुछ स्थानकवासी साधु पुलिसको साथ ले आप ठहरे हुए थे वहाँ आये । उस समय वहाँ कोई श्रावक नहीं था । केवल श्रीयुत हीरालाल शर्मा वहाँ थे । उन्होंने मकानका दर्वाजा बंद करलिया | पुलिसने दर्वाजा खोलने के लिए कहा । शर्माजीने कहा: - " लाला पन्नालालजीको और लाला महाराजमलजीको आप बुलावें | वे आयँगे तभी मैं दर्वाजा खोलूँगा । " पुलिसने उन्हें बुलाया और अपने आनेका सबब बता जुगल किशोरको अपने सिपुर्द कर देनेके लिए कहा । उन्होंने दर्वाजा खुलवाकर जुगलकिशोरको उनके सिपुर्द कर दिया ।
स्थानकवासी भाई जब जुगलकिशोरको गाड़ीमें बिठाकर ले जाना चाहते थे तब लाला पन्नालालजीने कहा :- “ ऐसा करना उचित नहीं है । उन्हें पैदल ही लेकर जाओ । इसमें जैन नामकी बदनामी है और खास तरहसे स्थानकवासियोंकी बदनामी है । "
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उन्होंने उत्तर दिया:- “ हम इसे स्थानकवासी साधु नहीं समझते; यह तो तुम्हारा साधु है । हमारी कोई बदनामी इसमें नहीं है । "
ला० पन्ना० - " भावोंसे ये हमारे साधु होते हुए भी बाना अबतक स्थानकवासियोंहीका पहन रहे हैं । इस लिए लोग आपहीको बुरा बतायँगे । "
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