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________________ १६२ आदर्श जीवन । करें और इनको अमृतसरहीमें दीक्षा दें । अमृतसरको भी गुजरात जानेके पहले, इतना विशेष लाभ देते जायँ ।" . आप मुस्कुराये और बोले:-" अच्छा लालाजी ! तुम्हारी ही मनोकामना पूरी हो।" . यह वाक्य मानों गंभीर घनगर्जन था। इससे दोनों साधुओं और तीनों श्रावकोंके मन-मयूर आनंदसे नाच उठे । आप फिरसे अमृतसर पधारे । जब आप अपने साधुओं, श्रावकों और दोनों स्थानकवासी साधुओंके सहित दर्वाजेके पास पहुँचे तब पाँच सात स्थानकवासी श्रावक आकर दोनों साधुओंसे झगड़ा करने लगे । लाला पन्नालालजीको ये समा चार मिले। वे तत्काल ही पुलिस लेकर पहुँचे । पुलिसको आई देख स्थानकवासी श्रावक झगड़ा छोड़ चुपचाप चले गये। आप निर्विघ्नतया मंदिरजीके दर्शन कर लाला महाराजमलजीके मकानमें जा बिराजे । स्थानकवासियोंने हो हल्ला मचाया और नालिश की किघासीराम नाबालिग जुगलकिशोरको बहका कर ले आया है और यहाँ उसे संवेगी साधु अपना चेला बनाना चाहते हैं। उन्हें इन्होंने लाला महाराजमलके मकानमें बंद कर रक्खा है, बाहर नहीं निकलने देते । यह मकान कटरारामगढियोंमें है । जुगलकिशोरकी माता जैन साध्वी (स्थानकवासी) है और अपने लड़केके वियोगमें व्याकुल हो रही है । अतः लड़का वापिस दिलाया जावे । लड़केको कहीं और जगह न भगा ले जायँ इस लिए उनके लिए वारंट निकाला जाय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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