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________________ आदर्श जीवन । १४५ की आप उस विनतीको मान कर कोटलेसे सामाने पधारे और सं० १९६० का सत्रहवाँ चौमासा वहीं किया । वहाँ एक जिनमंदिर बनवाना भी स्थिर हुआ। पंजाबमें प्राय:सभी स्थानोंपर पर्युषणोंमें रथ निकलते हैं। भगवानकी प्रतिमाएँ सारे शहरमें जुलूसके साथ फिराई जाती हैं। सामानमें भी बड़ी धूमसे जुलूस निकलनेकी तैयारियाँ हो । रही थी। शान्तमूर्ति मुनि श्रीहंसविजयजी महाराजने पालीतानेसे दो छोटी मूर्तियोंके साथ एक श्रीशान्तिनाथ भगवानकी दिव्य प्रतिमा भेजी थी। उसका नगरप्रवेश बड़ी धूमधामसे कराया । गया उस दिन भी स्थानकवासियोंने गड़बड़ी मचाई थी; मगर हमारे चरित्रनायकके दिव्य उपदेशके कारण सनातनी भी आप पर भक्ति रखते थे और हैं इस लिए उन्होंने भी इस कामको आपहीका काम समझकर रथ निकालनेमें पूरी सहायता की । स्थानकवासी देखते ही रह गये। __ लाला सीताराम और लाला पंजाबराय सामाना शहरमें अच्छे प्रतिष्ठित और वसीलेवाले आदमी हैं । जातिके अग्रवाल हैं और सनातन धर्म पालते हैं। वे हमारे चरित्रनायक पर इतनी भक्ति रखते हैं कि संभवतः श्रावक भी उनकी बराबरी शायद ही कर सकें। दोनों सज्जन नियमित रूपसे आपके व्याख्यान सुनने आते थे। उन्होंने प्रथमसे ही आपसे निवेदन किया था Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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