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________________ १४४ आदर्श जीवन। m " बिलकुल नहीं।" आपने फर्माया:--" इस कपड़ेहीका नाम मुँहपत्ति है । मैं हर समय इसका उपयोग करता हूँ। अब स्वयं आप विचार सकते हैं कि, श्रीयुत उदयचंद्रजीका आक्षेप कितना निरर्थक है।" __महाराजा हीरासिंहजी मुस्कुराये और बोले:-" उदयचंदजी तुम्हारी यह कपड़ा मुँह पर बाँध रखनेकी कला बिलकुल अच्छी नहीं लगती । जीव मरनेकी बात कहते हो सो हवा तो नाकमेंसे भी निकलती है और कानसे भी जाती आती ही है । अगर तुम जीवोंकी रक्षा ही करना चाहते हो तो इसतरहका टोपा बनाकर पहना करो।" सी तरहकी अनेक बातें हुई थीं। नाभेके शास्त्रार्थका फैसला और प्रश्नपत्र उत्तरार्द्धमें 'नाभेका शास्त्रार्थ के नामसे छपे हैं। ___ नाभेके शास्त्रार्थ के बाद आपने ' मालेरकोटला' की तरफ विहार किया। एक महीने तक वहीं रहे और भव्य जनोंको और जिज्ञासुओंको धर्मामृत पिलाकर कृतकृत्य करते रहे । सामानेके श्रीसंघने आपसे सामानामें चौमासा करनेकी विनती .. १ कहा जाता है कि, नाभानरेशने एक टोपा बनवाया । वह इस तरहका थ कि, जिससे आँखोंके सिवा नाक, कान और मुँह सभी ढक जायें । फिर एक बालकको सभामें बुलवाकर उसे वह टोपा पहनाया और कहा कि, तुम इस तरह पहना करो। इसीसे तुम्हारी धारणाके अनुसार तुम पूर्णरूपसे जीवोंकी रक्षा कर सकोगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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