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________________ आदर्श जीवन । १४३ पूज सोहनलालजी बड़े चक्करमें पड़े । हाँ कह कर हमारे चरित्रनायकके साथ शास्त्रार्थमें ठहरना दुःसाध्य था। ना कहनेसे लोगोंकी और खासकरके वहाँके अपने बड़े बड़े श्रावकोंकी निगाहसे गिर जानेका भय था। बहुत सोचविचारके बाद उन्होंने शास्त्रार्थ करनेकी सम्मति दी। मगर खुद शास्त्राथेमें शामिल न हुए। उन्होंने अपने पोते शिष्य श्रीयुत उदयचंद्रजीको इस शास्त्रार्थका मुखिया नियत किया और लिख दिया कि इनकी हारसे हमारी हार समझी जायगी और इनकी जीतसे हमारी जीत । - कई दिन तक यह शास्त्रार्थ हुआ। महाराजा हीरासिंहजी स्वयं शास्त्रार्थके समय उपस्थित रहते थे । प्रसंगोपात्त अनेक मनोरंजक बातें भी हुआ करती थी। उनमेंसे हम एकका यहाँ उल्लेख करते हैं। __ " एक दिन श्रीयुत उदयचंद्र ने कहा कि, " श्वेतांबर लोग मुँहपत्ति नहीं रखते हैं। शास्त्रोंमें मुँहपत्ति रखनेकी आज्ञा है । अतः ये लोग शास्त्राज्ञाके विगधक हैं।" - आप बोले;" धर्मावतार ! आप देखते हैं कि मेरे हाथमें एक छोटासा सोलह अंगुल लंबा और सोलह अंगुल चौड़ा कपड़ा है । इस कपड़ेको मुँहके आगे रक्खे विना कभी मैं एक शब्द भी नहीं बोलता । (सभामें बैठे हुए सभी लोगोंको संबोधन करके) क्या आपमेंसे कोई कह सकता है कि, मैं एक शब्द भी बगैर इस कपड़ेके बोला हूँ। सब बोल उठे, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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