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________________ १४२ आदर्श जीवन। सं० १९५६ में जब आप नाभा पधारे थे तभीसे, लालाजीके हृदयमें आपके लिए भक्ति उत्पन्न हो गई थी। . वे रोज व्याख्यानमें आते थे और धर्मवचनामृत पान कर कृतकृत्य होते थे। जिस रोज चर्चाकी बात छिड़ीथी उस दिन भी वे बैठे हुए थे। आपने उनकी तरफ देखा और कहाः--" लालाजी! सुना आपने ? नाभाका राज्य बड़ा ही न्यायी समझा जाता है। महाराज हीरासिंहजी सत्य निष्ठ और न्याय करनेमें साक्षात् धर्मराज हैं। आप इस न्यायासनके स्तंभ हैं; मगर आपके राज्यमें भी ऐसी बातें होती हैं। यह आश्चर्य है। एक बार राज्यसभामें शास्त्रार्थ कराकर सदाके लिए क्या इसका फैसला नहीं हो सकता ?" लालाजी कुछ देर सोच कर बोले:-" आप शास्त्रार्थ के लिए तैयार हैं ?" आपने उत्तर दिया:-" मैं हर समय तैयार हूँ। आप मेरे इन छ: प्रश्नोंका उत्तर मँगवा दें।" आपने छः प्रश्न लिखे हुए दिये। __ लालाजीने जाकर महाराज हीरासिंहजीसे अर्ज की। प्रश्नपत्र भी दिया । उन्होंने फर्मायाः-"कोई हर्ज नहीं है । तुम स्थानकवासियोंको पूछकर इसका प्रबंध कर दो।" लाला जीवारामजीने पूज सोहनलालजीके पास आदमी भेजकर उनसे पूछा कि आप शास्त्रार्थके लिए तैयार हैं या नहीं ? श्वेतांबरी शास्त्रार्थके लिए तैयार हैं।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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