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________________ आदर्श जीवन । १४१ .. नाभाके महाराज श्रीहीरासिंहजी बड़े ही धर्मप्रेमी और न्यायी थे । साधु संतों पर उनकी बड़ी भक्ति थी। जब उन्होंने हमारे चरित्रनायकके आगमनकी खबर सुनी तो आपको बुलाया । आप राजसभामें पधारे । नरेशने आपको बड़े आदरके साथ ऊँचे स्थान पर बिठाया । आपसे वार्तालाप कर नरेश बहुत प्रसन्न हुए। उनके अन्तःकरणमें बड़ी ही शान्ति हुई । सच है-- ___चंदनं शीतलं लोके, चंदनादपि चंद्रमाः । चंदनचंद्रयोमध्ये, शीतलः साधुसंगमः ॥ ( भावार्थ संसारमें चंदन शीतल है, चंदनसे चंद्रमा शीतल है, मगर चंदन और चंद्रमाकी अपेक्षा भी साधुओंकी संगति विशेष शीतल है,-आत्माको विशेष रूपसे शान्ति देनेवाली है।) ___ अनेक मतमतान्तरोंकी चर्चा होती रही । नाभानरेश और उनके दर्बारी आपकी विविध धर्मोकी जानकारी, तथा भिन्न भिन्न धर्मोंके तत्वोंको, अहिंसाधर्मके प्रतिनिधिके रूपमें होनेकी, प्रतिपादनकरनेकी सुंदर रीतिको देखकर बड़े खुश हुए । सबने धन्य धन्य कहा । करीब एक घंटे तक वार्तालाप करके आप अपने उपाश्रय लौट गये । लाला जीवाराम नाभामें एक बहुत प्रतिष्ठित सज्जन थे । जातिके अग्रवाल और नाभानरेशके बालमित्र थे। राज्यमें वे चाहते थे सो करसकते थे । यद्यपि वे वैष्णवधर्म पालते थे, तथापि हमारे चरित्रनायक पर उनकी अचल भक्ति थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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